शुक्रवार, 2 दिसंबर 2011

आत्रेया का जन्म दिन २६/१०/2011

दादा बना पोता पाया, मेरा बचपन लोट आया,
खुशियों की खिड़की खुली थी कुदरत ने दीप जलाया,
मेरा बचपन लौट आया !
२६ अक्टूबर २००३ ने ज्योंही कदम बढ़ाया,
मेरा पोता आत्रेय मेरे आँगन में आया,
बाग़ बगीचे पवन झरोखे नाच रहे थे सारे मिल के,
मन मयूर भी कूक रहे थे खोल के खिड़की दिल के,
सूरज ने अपनी किरणों से गुलाबी रंग बरषाया,
और फूलों ने अपनी खुशबू खुशी खुशी लुटाया,
चारों दिशा के दिग्पालों को मैंने यही बताया,
दादा बना पोता पाया मेरा बचपन लौट आया !
आज ८ साल का मेरा पोता जन्म दिन मनाएं,
एक साथ मिलकर क्र सारे मधुर गीत सुनाएं,
ऐसा जन्म दिन मनाएं यादगार बन जाए,
हर बच्चे का जन्म दिन फिर सब ऐसे ही मनाएं,
आओ बच्चो हंस लो गालो मंद मंद मुस्कराओ,
मोमबती जल गयी है जोर से ताली बजाओ !
मेरे मन के मंदिर ने भी मुझको याद दिलाया,
दादा बना पोता पाया मेरा बचपन लौट आया !
हरेंद्रसिंह रावत, १६६ ब्रेटल सर्किल
मेलविल न्यू यार्क, अमेरिका २६/१०/२०११

शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

चटपटी खबरों के जंगल में

सरकार भी चल रही है और जनता भी चल रही है, सरकार महंगाई बढ़ा रही है, जनता रो बिलख रही है फिर झोला लेकर बाजार जाकर नून तेल लकड़ी, सब्जी, राशन लेकर स्कूटर या कार में धर कर ला रही है ! सरकार सोचती है "यार कमाल हो गया इस जनता पर कोई असर ही नहीं, दो चार दिन हाय तोबा मचाती है, आन्दोलन करती है, काली पट्टी बाँध कर जाम लगा देती है फिर सब नौरमल हो जाता है "! फिर एक जलता बलता धुंवा छोड़ता हुआ सरकारी आदेश निकल जाता है, गैस बढ़ गयी, सब्जी बढ़ गयी, मिट्टी का तेल बढ़ गया, समझ नहीं आ रहा है ये कौन सा नया खेल खेल रही है सरकार जनता के साथ !
कालेजों में आरक्षण कोटा ! तू डाल डाल मैं पात पात ! रईस बच्चों ने अपनी जेबें ढीली की जाली काष्ट प्रमाण पत्र बनवाया और ले लिया आरक्षण कोटे से एड्मीसन ! बेचारे होनहार होशियार लडके ९० प्रतिशत में भी दाखिला से बंचित हैं और शरारती तत्व कपिल सिब्बल के नए सिस्टम का आनंद उठा रहे हैं ! सच्चे रो रहे हैं, झूठे हंस रहे हैं !
कोर्ट कचहरी, नीरज ग्रोवर की ह्त्या हुई, मारिया और जेरोम हत्यारे बच गए ! जज साहेब कहते हैं मारिया ने सबूत मिटाने की कोशीश की और जेरोम ने इरादे से ह्त्या नहीं की इसलिए दोनों छोड़ दिए गए ! ह्त्या तो हुई, वो बाप का बेटा जो मारा गया वापिस तो नहीं आएगा, फिर ह्त्या तो हुई है इरादे से हुई है या गैर इरादे से ! देश में सब कुछ संभव है 'शेर ने बकरी को मारा या बकरी ने शेर को ' !
प्रधान मंत्री ७८ साल की उम्र में भी १८ घंटे लगातार काम करते हैं और फिर जवान की तरह भागते हैं, फिर अभी राहुल को लाने की क्या जल्दी ? रहने दो मन मोहन जी को अगले २०१४ तक जिन मंत्रियों ने ए राजा, कलमाडी और अन्य भ्रष्ट नेताओं की तरह जेबें गरम नहीं की उन्हें भी तो अवसर मिलना चाहिए !
सरोजनी नगर में शोर शराबा मचा उधर उस कोने में बम है ! पुलिस फ़ोर्स, बम डिस्पोजल फ़ोर्स मौके वारदात पर पहुँच गयी, काफी मसकत के बाद पता लगा "कमाल हो गया यह बम नहीं टीवी का रिमोट कंट्रोल है " ! खोदा पहाड़ निकली चुहिया ! कलकाता हॉस्पिटल में एक हफ्ते के अन्दर ४० बच्चे मौत के मुंह में चले गए हैं, लेकिन प्रशासन और हॉस्पिटल ऑथोरिटी एक दूसरे के ऊपर ब्लेम डालने की कोशीश करेंगे, ४० घरों के माँ बापों के घरों के चिराग तो बुझ गए ! ममता जी ने इन्क्वारी बिठा दी है और अगले २४ घंटें में रिपोर्ट माँगी है ! इनसे और क्या हो सकता है ?
क्रिकेट : भारत -वेस्ट इंडीज
पहला टेस्ट मैच तो भारत ने जीत लिया ! दूसरे मैच में जो धान्धलेवाजी वहां हुई वह शर्म नाक थी ! अम्पायर ने विराट कोहली, सुरेश रैना और धोनी को गलत ऑउट दे दिया ! धोनी के केश ने तूल पकड़ा तो असलियत सामने आई ! हुआ ये की इम्पायर ने धोनी को एक नो गेंद पर ऑउट दे दिया, जब धोनी बाहर जाने लगे तो थर्ड इम्पायर ने उन्हें रोक दिया ! स्क्रीन पर दिखाया गया की गेंद कहीं गलत तो नहीं थी, लेकिन वेस्ट इंडीज के कैमरा वाले ने इससे पहले वाली गेंद इम्पायर को दिखा दी, और धोनिको ऑउट दे दिया गया ! क्या ऐसे शर्म नाक गुस्ताखी के लिए गलती करने वाले को सजा नहीं मिलनी चाहिए, शक्त से शक्त सजा का प्रावधान होना चाहिए, ताकी दुबारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेले जाने वाले खेलों में ऐसी हरकत दुबारा न होने पाए !

रविवार, 26 जून 2011

देश में प्रधान मंत्री का अकाल

हाँ सचमुच में, जब भी इस महान देश की प्रधान मंत्री की कुर्सी का जिक्र आता है तो सबसे पहले श्री जवाहर लाल नेहरू द्वारा लगाया गया वह पौधा याद आता है जो उनहोंने १५ अगस्त १९४७ ई० को हिन्दुस्तान पाकिस्तान बनाकर लाखों घर उजाड़ कर, हजारों बेगुनाहों को बेरहम पाकिस्तानियों से मरवाकर संसद भवन में लगाया था ! २६ जनवरी १९५० ई० को जो संविधान बना वह भी इंग्लैण्ड के १९३५ ई० के एक्ट को आधार बनकर बनाया गया ! कहा तो यह गया था की "अब हम आजाद हो गए हैं, सारे हिन्दुस्तानी हर जगह, चाहे वह न्यापालिका हो चाहे कार्यपालिका हो और चाहे हो विधायिका समानता और एक ही नजर से देखें जाएंगे ! हर देश का नागरिक अपनी योग्यता के आधार पर नौकरी पाने का हक़ दार होगा, अमीर गरीब, ऊंचे नीचे, मजदूर मालिक प्रजातांत्रिक, धर्म निरपेक्ष देश में कर्तब्यों का पालन करेंगे और सविधान में दिए गए, शिक्षा का अधिकार, जीने का अधिकार, वोट देने का अधिकार, सांसद और विधायक के लिए चुनाव लड़ने का अधिकार ! समानता का अधिकार, देश के किसी भी भाग में जाकर घूमने फिरने का अधिकार, नौकरी करने का अधिकार का सहभागी बनेंगे ! कल के राजा रजवाड़े, जागीरदार, जमीदार, बड़े बड़े सेठ साहूकार जिन्होंने जिन्दगी भर अंग्रेजों की गुलामी की, स्वतंत्र सेनानियों के स्वतंत्रता आन्दोलन को कुचलने में अंग्रेजों की मदद की और भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, सुखदेव राजगुरु जैसे देश भक्तों को फांसी पर लटक वाया, वही लोग पैसों के बल पर स्वतंत्र देश के शासक बन बैठे ! अंग्रेजों ने कुछ भी तो नहीं छोड़ा था मिट्टी तक वे इंग्लैण्ड ले गए थे ! उलटे गांधी जी के जिद के आगे पाकिस्तान को ५० करोड़ रुपये और दे दिए गए, पाकिस्तान के हुक्म रानों ने इन पैसों से हथियार खरीद कर काश्मीर पर आक्रमण कर दिया ! संयुक्त राष्ट्र के दबाव के कारण भारतीय सैनिकों को युद्ध बंद कर देना पड़ा और पाकिस्तान काश्मीर के एक तिहाई हिस्से पर अपना कब्जा जमा कर बैठ गया ! आज भी इस काश्मीर की सुरक्षा पर देश की आय का एक बहुत बड़ा भाग खर्च किया जा रहा है ! जब भी भारत प्रगति के रास्ते पर बढ़ने की कोशीश करता है, पाकिस्तान अमेरिका से मिले भीख से हथियार खरीदता है और अकारण ही काश्मीर पर या देश की सीमा पर आक्रमण कर देता है !
देश का पहला मंत्रीमंडल बना, जिसमें नेहरू के अलावा, सरकार पटेल, सरदार बलदेवसिंह, कृष्णमाचार्य, मोरारजी देसाई, सुचेता कृपलानी, श्रीमत्ती नायडू, अब्दुल कलाम आजाद रफीक किदवई और भी बहुत सी जानी मानी हस्तियाँ थीं, सारे चरित्रवान, योग्य और जनता के असली रहनुमा थे ! कृष्णा मेनन इंग्लैण्ड में भारतीय दूतावास में सर्वे सर्वा था, उन्हीं दिनों भारतीय रक्षा मंत्रालय ने इंग्लैण्ड से सैनिकों के लिए दुर्गम घाटियों में चलने वाली विशेष जीप- जोंगे मंगाए, उनकी खरीद फरोक्त में भी कमीशन लिया गया, देश का सबसे पहला भ्रष्टाचार का मामला उजागर हुआ, लेकिन मामला तूल पकड़ने से पहले ही दबा दिया गया ! वे सारे जीप जोंगे कबाड़ खाने में गए ! फिर कांग्रेसियों में नेहरू के बाद इन्द्रा जी का नाम भुनाया जाने लगा, लेकिन लाल बहादूर शास्त्री सर्व सम्मति से प्रधान मंत्री बनाए गए ! ताशकंद में ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर होते ही उनकी मृतु हो गयी ! इन्क्वारियाँ हुईं प्रोसीडिंग भी तैयार की गयी लेकिन उसे जग जाहीर नहीं होने दिया, क्या परस्थितियाँ थी, शास्त्री जी के साथ ही मौत के रहस्य भी दफ़न हो गए ! इन्द्रा गांधी जी नेहरू की सुपुत्री को कुर्सी सौंप दी गयी ! उस समय तक देश में कोंई सक्षम विपक्ष नहीं था, इस तरह कांग्रेस जैसा चाहती थी करती थी ! १९८४ ई० में इन्द्राजी के बाद राजीव गांधी, ऐसा नहीं था की कांग्रेस में कोंई राजीव को टक्कर देने वाला नहीं था, लेकिन नेहरू गांधी परिवार के प्रति श्रद्धा और भक्ती, वंश आगे बढ़ता रहा जैसे प्रजातंत्र न होकर यह राजतंत्र हो ! राजीव के बाद फिर सोनिया का नाम जोर शोरों से उछाला जाने लगा, लेकिन समय काफी बदली हो चुका था, किसी भी पार्टी के पास बहुमत न होने से उन्हें बाहर से समर्थन लेना पड़ा, कांग्रेस में ही दरार पद गयी, सरद पंवार, ममता बनर्जी अपनी अपनी पार्टी बनाकर अलग हो गए ! भिन्न भिन्न घटकों द्वारा बना भानमती का कुनवा बन गया ! उनमें से बहुतों ने सोनिया को विदेशी मूल होने के कारण देश का प्रधान मंत्री स्वीकार करने से इनकार कर दिया ! परिवार से अलग हटकर दसरा प्रधान मंत्री नर्सिघा राव बना ! फिर १९९६ से २००४ चार तक विपक्ष सता पर काबिज रहा ! २००४ चार में फिर सहयोगी पार्टी के सर ताज सरद पंवार और दूसरे घटकों ने सोनिया को नकार दिया तो कांग्रेस ने साफ्ट कारनर ढूंढ कर मन मोहनसिंह को प्रधान मंत्री की कुर्सी थमा दी और रिमोट दे दिया सोनिया जी के हाथों में ! सात सालों से लगातार मन मोहनजी आँख मूँद कर कुर्सी का सुख भोग रहे हैं और सता के केंद्र बिंदु से आदेश ले रहे हैं ! सोनिया जी के नव निहाल कांग्रेस के वेताज प्रिंस अब ४१ साल के होगये हैं, अब परिवार के खासम ख़ास जैसे, दिग्विजयसिंह जी को फिर खाज उठने लगी है अब वे कहते फिर रहे हैं " राहुल को अब प्रधान मंत्री का तख्ते ताउस संभाल लेना चाहिए, वे सब गु न समपन्न हैं ! " उनके चमचों में कुछ ऐसे भी हैं जो कहते हैं "की प्रियंका जी को भी आगे लाओ और समय पड़ने पर उन्हें भी गद्दी पर बिठाओ " ! देखना है प्रजातांत्रिक देश में ऊँट किस करवट बैठता है ! ये कैसा प्रजातंत्र है ? अध्ययन मनन करने की जरूरत है ! आखीर होगा वही जो राम रची राखा !

बुधवार, 8 जून 2011

संत पर लाठी

संत अनशन पर बैठा था ! देश में अनाचार, भ्रष्टाचार, रिश्वत खोरी, जमा खोरी का साम्राज्य है ! देश का बहुत सारा धन बड़े बड़े सूरमाओं का, मंत्रियों का, नौकर शाहों का, व्यापारियों का, उद्योग पतियों का जनता से छिना हुआ पैसा विदेशी बैंकों का कालाधन बन कर उस देश की प्रति में हाथ बंटा रहा है और इधर देश की असंख्य जनता गरीबी के बोझ तले सिसक रही है ! सरकारी गोदामों में अनाज सड़ रहा है, लेकिन सरकार के शीर्ष पर बैठे हुए शीर्षासन में हैं, कान आँखें बंद हैं ! आम आदमी की पीड़ा संत ही समझ सकते हैं, संत ने सरकार पर दबाव बढ़ाया "कालाधन देश का विदेशी बैंकों से वापिस लाओ" ! उलटा संत और उसके सहयोगियों को रात के डेढ़ बजे पुलिस द्वारा लाठी चार्ज करवा गया ! किसी की कमर तोड़ दी गयी, किसी का हाथ तो किसी की टांग ! राम लीला के मैदान को रावण, कुम्भ करण, शुम्भ निशुम्भ, खर दूषण, ताडीका और सुरपन खान की सैर गाह बना दिया गया और संतों को मार मार कर दूसरे लोक पहुंचाया गया ! हमारा देश धर्म निरपेक्ष प्रजातांत्रिक देश है जहाँ यह कहना भी गुनाह है की "देश की जनता की गाढ़ी कमाई जो बनकर विदेशी बैंकोंमें पड़ा है उसे वापिस लाओ" ! अब जब सुप्रीम कोर्ट ने जबाब माँगा तो सरकार का पूरा तंत्र पुलिस के इस जघन्य अफराध को छुपाने प्रयास किया जा रहा है ! लेकिन मनमोहनसिंह तथा उनके सारे मंत्री मंडल के सदस्य, सोनिया जी और राहुल जी ऊपर वाले की आँखों में अभी तक न कोइ धुल झोंक पाया है न झोंक पाएगा ! उसकी वेआवाज के डंडे की चोट बड़ी भयानक होती है ! यमराज के पास सबको अकेले अकेले जाना है और अपने दुष्कर्मों के लिए सजा भी स्वयं भी भुगतनी है ! तैयार हो जाओ शैतानों अब संतों की बारी है !

गुरुवार, 2 जून 2011

योग गुरु स्वामी राम देव - जून 2011

स्वामी बाबा रामदेव जी दिल्ली के ऐतिहासिक राम लीला ग्राउंड में पंहुच चुके हैं और जनता को दिए वादे के अनुसार वे ४ जून २०११ से आमरण अनशन पर बैठ जाएंगे ! मुद्दा जनता की खून पशीने की कमाई देश के भारी भरकम मंत्रियों, राजनीतिज्ञों, उद्योगपतियों, व्यावारियों द्वारा लूट कर विदेशी बैंकों में काला धन बनकर वहां की जनता की गरीबी के स्तर को कम कर रही है और देश की गरीबी रेखा की लम्बाई बढ़ रही है, उस धन को बाबा जी वापिस देश में लाकर देश की गरीबी को जड़ मूल मिटाना चाहते हैं ! लेकिन कांग्रेस सरकार जो पिछले ६४ सालों से दिल्ली की गद्दी पर बैठ कर अपने परिवार, रिश्तेदार और परिवार के बफादार सेवकों के जीवन स्तर को ऊंचा उठाने के अलावा इन्होने और क्या किया है ! क़ानून व्यवस्था चरमरा गयी, सेठ और बड़े सेठ बन गए और गरीब और भी गरीब हो गए ! भ्रष्टाचार, रिश्व्खोरी, सीना जोरी, किड नेपिंग, दिन दहाड़े डकैती, आतंकवाद, नक्षलवाद, ये किसकी दें है, कांग्रेस की ! परिवारवाद और भाई भतीजावाद देश पर लाद दिया गया और नाम दे दिया प्रजातंत्र ! इस प्रजातंत्र में प्रधान मंत्री कौन कौन बने जब जब कांग्रेस सता में रही ! आज प्रधान मंत्री तो मनमोहन सिंह है लेकिन वे तो रिमोट कंट्रोल से चलाए जाते हैं, उन्हें आदेश है उपरी कमांड जब भी कहेगी की अब कुर्सी खाली करो राहुल आ रहा है, कुर्सी खाली मिलनी चाहिए ! इन सारी बुराइयों को सुधारने के लिए ही तो योग गुरु स्वामी रामदेव को आमरण अनशन के लिए दिल्ली आना पड़ा ! उनके सपोर्ट में अन्ना हजारे, आर एस एस, तमाम साधू समाज, संतों का विशाल लश्कर आगे आ गया है ! संतों का कहना है "जब संत कोंई फैसला कर देता है वह लक्षमण रेखा बन जाती है और इस समाज के बेहतरीन कार्य के लिए हम सब साधू संत बाबा रामदेव के साथ हैं !" दश करोड़ जनता का सपोर्ट सो अलग ! अब कांग्रेस
के पशीने छूटने लगे हैं ! उसके ऊंची नाक वाले, वरिष्ट मंत्री भाग भाग कर स्वामी जी के आगे पीछे मंडराने लगे हैं ! सरकार अपनी सफाई में बड़ी बड़ी योजना बना रही है की सरकार विदेशोंमें पड़े इस काले धन को वापिस लाने के लिए क्या क्या कदम उठा रही है और उस ड्राफ्ट को मंत्री मंडल और कांग्रेस की उच्च समिति से पास करवा कर स्वामी जी की सेवा में चार बड़े मंत्रियों के द्वारा भिजवाया जा रहा है ! वाह क्या कहने !! स्वामी जी का आन्दोलन तो अन्ना हजारे के डंक से भी ज्यादा जोर का झटका देने वाला है ! उधर अर्द्ध विक्सित पागल दिग्विजय सिंह अपनी चोंच नहीं बंद कर पा रहा है ! शायद इसके भी राजनीति के इने गिने दिन ही शेष रह गए हैं ! चींटी के जब पंख निकल आते हैं तो समझो उसके ऊपर जाने का समय आ गया है ! आगे आगे देखो होता है क्या ?

मंगलवार, 31 मई 2011

दादी माँ - दूसरा भाग

समय का पंच्छी अपने श्याम और श्वेत पंखों से खुले नील गगन में उड़ता गया और पर्वतसिंह के सैनिक जिन्दगी के २१ साल कब पूरे हो गए उसे पता भी नहीं चला ! उस समय वह कंपनी का हवलदार मेजर था और आगे के प्रोमोशन का कोई चांस नहीं था ! कंपनी ने उसके २१ साल की बेहतरीन, बहादुरी और एक आदर्श सैनिक की सेवा के लिए उसे एक मोमेंटो प्रदान किया जो उसे हर समय अपनी सेना में बिताए हुए अच्छे और संकटमय दिनों की याद दिलाता रहेगा और उसे भारतीय पूर्व सैनिक होने का गर्व होता रहेगा ! साथियों ने भी उसे यादगार भेंटों से लाद दिया था ! साथियों से बिछुड़ने का जहाँ गम था वहीं अपने माँ-पिता की सेवा करने का उसे अब अवसर मिल गया था इसकी उसे खुशी थी ! अपने परिवार में समय बिताने का और अपने एक मात्र लड़का सुमेर की देख रेख और उसकी पढाई लिखाई कराने का अब उसके पास वक्त ही वक्त था ! उस समय तक सुमेर ८ वीं की परीक्षा पास कर चूका था ! बारवीं तक की स्कूल उसके गाँव से ५ मील दूर थी , लेकिन अब सडकों ने गावं गाँव स्कूल और सरकारी अस्पतालों की दूरियां कम कर दी थी ! इस समय गाँव के १० बच्चे ९ वीं से १२ वीं में पढ़ते थे, सारे बच्चे एक साथ जाते थे जीप से और शाम को जीप से ही वापिस आते थे ! समय काफी बदल गया था, अब किसान खेतोंमें कम ही काम करते थे ! जवान बच्चे १० वीं और १२ वीं करके या तो सेना, नेवी, बी एस एफ, सी आर पी एफ या फिर स्टेट पुलिस में भरती होकर देश सेवा में लगे थे ! गाँव में अब बुजुर्गों की संख्या बढ़ने लगी, खेत खलियान बंजर होने लगे ! अब तो रोज नेताओं का जमघट गाँव गावों में होने लगा ! हर साल चुनावों का बिगुल बजने लगा ! बेकार और अनपढ़ लडके नेताओं का झोला उठाने में लग गए ! पर्वतीय क्षेत्रों के गाँव अब वीरान होने लगे ! जंगली जानवरों की आवाजाही होने लगी ! पहले खेत खलियानों में बन्दर लंगूरों को खाने को मिल जाता था,
लेकिन खेत खलियानों वीरान होने से वे घरों में घुसने लगे ! पहले गाँव फलदार पेड़ों से ढका था, आम, जामुन, संतरे, नीम्बू, चबूतरे, पपीते, सेब, अमरूद और नाशपाती ! समय की आंधी ऐसी चली की फसलों के साथ साथ सारे फलदार वृक्ष को भी उड़ाकर ले गयी ! ऊपर से बाघ का आतंक ! रोज कोई न कोई खबर आती की बाघ नर भक्षी
बन गया है, अमुक गाँव से आदमी को मार गया, अगले गाँव से एक बच्चे को उठाकर ले गया, आदि आदि ! अब माहोल काफी चिंता जनक होगया था ! कुछ परिवार तो बच्चों की सुरक्षा के लिए गाँव छोड़ कर शहरों या कस्बों में जाने लगे ! लेकिन पर्वतसिंह वहीं डटा रहा ! सुमेर ने भी १२ वीं सास कर ली थी और आगे इंजिनियर कोर्स के लिए बंगलौर चला गया था ! धीरे धीरे पर्वत सिंह के माता - पिता जी बीमार रहने लगे और ऊपर वाले की लीला तो देखो दोनों एक हफ्ते के अंतर से एक के बाद दूसरा स्वर्ग वासी हो गए ! अब घर में रह गए पर्वतसिंह और उसकी पत्नी परमेश्वरी ! उधर सुमेरसिंह ने चार साल का कोर्स पूरा किया और अपने साथ पढ़ने वाली एक सेठ की बेटी से शादी कर दी ! वहीं उसकी नौकरी भी लग गयी ! यह सुनकर पर्वतसिंह और उसकी पत्नी को बड़ा सदमा लगा ! और इसी सदमे से आहत होकर वह भी इस पञ्च तत्व के शरीर को छोड़ कर दूसरे लोक को चला गया ! परमेश्वरी पर तो मानों बज्रपात ही होगया ! दो दिन तक तो उसे होश ही नहीं रहा ! गाँव में एकता थी, सारे गाँव वाले इकट्ठे हो गए, कोइ वैद्य को बुलाने गया कोइ दवाई लेने कस्बा गया आखीर उनकी मेहनत रंग लाई और परमेश्वरी देवी होश में आई ! कुछ दिनों तक तो रोना धोना होता रहा, गाँव की बुजुर्ग महिलाएं हर वक्त परमेश्वरी के साथ साथ रहने लगी उसे ढाढस देती रही और जिन्दगी जीने की हिम्मत देती रही ! लडके को खबर दे दी गयी थी लेकिन वह नहीं आया ! समय गुजरता रहा परमेश्वरी रोज अपने लडके का इंतज़ार करती रहती, हर आने वाली बस के आगे खडी हो जाती, लेकिन सुमेर नहीं आया ! इस तरह तीन साल बीत गये ! और एक दिन अचानक सुमेर आया अकेला नहीं अपनी पत्नी सुधा और एक साल के बचे के साथ ! बच्चे के साथ परमेश्वरी अपने को भूल गयी ! सारे गिल्वे शिकवे भूल गयी ! बच्चा भी हर समय दादी के इर्द गिर्द ही घूमता रहता था ! बच्चे का नाम था अमन बहुत सुन्दर और प्यारा था ! दो महीने कब बीत गए पता ही नहीं चला ! इन्हीं दिनों सुमेर ने गाँव की जमीन और मकान दूसरे गाँव के जमीदार को बेच दिया ! परमेश्वरी को खबर भी नहीं होने दी ! फिर आकर अपनी माँ को कहा की "माँ मैंने यह गाँव की पैतृक जमीन बेच दी है, क्या दिया है इसने हमें उलटा दादी दादा और मेरे पिता जी को मेरे से छीन लिया, फिर इसकी देख भाल तू अकेले कर भी नहीं सकती थी, अब तू बंगलौर हमारे साथ ही रहेगी ! देख पोता तेरे साथ किस कदर हिल मिल गया है, अब तुम्हे अपने पोते के साथ ही रहना है !" पहले परमेश्वरी ना नुकुर करती रही लेकिन आखीर जाने के लिए तैयार हो गयी ! गाँव के बुजुर्गों ने जाते जाते उसे सावधान होने को कहा था, सारे गाँव वासी बड़े छोटे उसे भेजने के लिए बस स्टॉप तक आये थे, महिलाएं गले मिल कर खूब रोई थी, बहुत सालों का बंधन जो था ! वे लोग बंगलौर पहुँच गए ! माँ को सुमेर ने कुछ भी नहीं बताया जमीन के बारे में की "उसने जमीन किसको बेची और कितने में बेची " ! सारे पैसे अपने पास ही रख लिए ! बंगलौर आकर दो महीने तक तो माँ का आदर सत्कार होता रहा लेकिन तीसरे महीने में जैसे गर्मी आने लगी सुमेर ने तीन कमरों के मकान होते हुए भी माँ की चारपाई स्टोर रोम में लगा दी ! वहां बेचारी गर्मी से मच्छरों से परेशान होने लगी, लेकिन किसी से कुछ भी नहीं कह पाती थी ! कभी पेट में पीड़ा उठ जाती, कभी बुखार आजाता लेकिन चुपचाप वह सब कुछ सहन करती रहती ! उसे गाँव की याद आती, खुला हुआ घर, न गर्मी न सर्दी, जब कभी सिर में हल्का सा भी दर्द होता गाँव की बहुवें आकर सिर दबाती, पाँव दबाती, कितनी सेवा करती थी वे बहुवें जो अपनी सगी नहीं थी, पर प्रेम की डोर से बंधी थी ! और यहाँ तो सब अपने हैं ! समय निकलता रहा तीन साल बीत गए, पोता अमन अब पांच का हो गया था ! पोता छोटा था लेकिन दादी की परेशानियां समझता था ! एक दिन वह स्कूल से भागता हुआ आया सीधे दादी
के पास स्टोर रोम में गया और जोर जोर से बोला "दादी अब तुम्हे यह घर छोड़ना पड़ेगा, आपके लिए इस घर में कोइ स्थान नहीं हैं ! कल से स्टोर में हमारी नौकरानी रहेगी, ये कम्बल का आधा टुकड़ा ले जाओ और यहाँ से जाओ कहीं भी जाओ पर हमारे घर से जाओ ! परमेश्वरी इस अप्रत्यासित नादिर शाही आदेश से आहत हो गयी ! उसके मुंह के शब्द मुंह में ही रहगये ! वह चुप चाप खडी भौचक्की सी अपने पोते के रौद्र रूप को देख रही थी ! तब तक शोर शराबा सुन कर सुमेर के मम्मी पापा भी वहां आ गए ! उनको देख कर सुमेर और जोर से बोला, "सुनो दादी तुम्हारा सबसे बड़ा अफराध है की आप मेरे इंजिनियर पापा की मम्मी हो और इंजिनियर मम्मी की सास हो ! जब बड़े बड़े लोग आते हैं तो मुझे शर्म आती है आपको दादी कहते हुए ! " उसके पापा ने कहा कहा "तुम ठीक कहते हो, मैं भी यही सोच रहा था ! लेकिन तुमने ये कम्बल दो भागों में क्यों किया, पूरा ही कम्बल दे देते दादी को " ! अमन बोला मम्मी पापा कुछ ही दिनों की तो बात है कल आपको भी बुढापा आ जाना है और मुझे आप लोगों को भी घर से निकालना पडेगा फिर एक और कम्बल फाड़ना पडेगा, ये बचा हुआ टुकड़ा आपके लिए रखा हुआ है ! यह सुनते ही सुमेर और उसकी पत्नी की सोई हुई इंसानियत जाग गयी ! अमन बोला, 'तुमने मेरी दादी को जानवरों से भी गया बीता समझ कर स्टोर रोम में डाल रखा है, मैं भी तो वही शिक्षा ले रहा हूँ आप लोगों से " ! इतना कहते हुए वह दादी से लिपट कर फूट फूर कर रो पड़ा ! उसके मम्मी पापा भी परमेश्वरी के कदमों में गिर पड़े ! गीड गीडाने लगे अपने अफराधों के लिए माँ से क्षमा माँगने लगे ! उस दिन से परमेश्वरी की खूब इज्जत और आदर होने लगा ! उसको एक सजा सजा कमरा दिया गया, वहां कूलर फिट किया गया ! अब दादी पोते एक ही कमरे में रहते हैं ! दादी भी खुश और पोता भी खुश हैं !

सोमवार, 30 मई 2011

दादी माँ - कहानी

पर्वतसिंह ने अपनी जवानी के २१ साल भारतीय स्थल सेना की सेवा में बिताए ! उसका गाँव उत्तराखंड के एक पहाडी इलाके में पड़ता था ! जब वह सेना में भरती हुआ था उस वक्त तक उसका गाँव एक पिछड़ा गाँव कहलाता था ! जमीन तो थी लेकिन पानी की कमी थी ! गाँव से करीब आधे किलो मीटर नीचे एक पानी का चस्मा था, वहीं से लोग पानी लाते थे अपने लिए तथा अपने मवेशियों के लिए भी ! गाँव बड़ा नहीं था लेकिन छोटा भी नहीं था ! गाँव के सारे लोग हल लगाकर खेतों में बीज बो देते थे और बाकी ऊपर वाले की मर्जी पर छोड़ देते थे, अगर अच्छी वर्षा हो गयी तो अच्छी फसल हो जाती थी अगर बारीष नहीं हुई और समय पर नहीं हुई तो उस साल गाँव वालों को बड़ी मुशीबतों का सामना करना पड़ता था ! फसलों में गेंहूं, धान, झंगोरा, जौ, मंडुवा, मकई, प्याज लहसून, अरबी, दालें आदि आदि ! वैसे गाँव वालों की मेहनत और अटूट विश्वास के सामने ईश्वर भी समय पर वारीष कर दिया करते थे ! इस गाँव में करीब २५ परिवार थे ! प्राईमरी स्कूल तो नजदीक ही थी लेकिन जूनियर हाई स्कूल गाँव से काफी दूर पड़ता था ! ऐसा नहीं था की इस गाँव के बच्चे प्राईमरी से आगे पढ़ ही नहीं पाते थे ! लगनशील, मेहनती और पक्के इरादे वाले बच्चे दूर के जूनियर हाई स्कूल जाते थे उस दूर के स्कूल में , वहां एक हफ्ते के लिए राशन, रात सोने के लिए हल्का बिस्तर और एक जोड़ी कपडे साथ ले जाते थे ! स्कूल में भी अध्यापकों के लिए पानी और खाना पकाने के लिए लकड़ी भी बच्चों को ही लानी पड़ती थी ! जो बच्चे नजदीकी गाँवों से आते थे वे अपने मास्टर जी के लिए बारी बारी से रोज दूध भी ले आते थे ! पैसे कम थे लेकिन इमानदारी थी, सज्जनता थी और एक दूसरे पर अटूट विश्वास था ! इस गाँव के बच्चे पूरे एक हफ्ते में गाँव आते थे, अपने मैले कपडे स्वयं धोते थे और फिर सोमवार की सुबह दुबारा एक हफ्ते का राशन पानी लेकर दश बजे स्कूल में हाजिरी देने के लिए चले जाते थे ! यह सिलसिला चलता रहता था जब तक बच्चे अपनी ८ वीं की परिक्षा नहीं दे देते थे ! गाँव में करीब सबकी आर्थिक स्थिति एक जैसे ही थी, हाँ उन्नीस बीस का अंतर जरूर था, जिनके बच्चे ज्यादा होते उनको ज्यादा मेहनत करनी पड़ती ! हल बैल सब के होते थे ! दो तीन गाएं कुछ बकरिया और कुछ भेड़ें भी वे पालते थे ! गाँव चारों और से जंगलों से घिरा हुआ था, इस तरह घास लकड़ी की ज्यादा परेशानी नहीं थी ! कस्बा भी गाँव से दूर ही पड़ता था, वहां कसबे में राशन पानी की दुकाने थीं ! एक डाक खाना था ! एक सरकारी छोटा सा नर्सिंग होम था, जहां एक नर्सिंग सहायक तथा एक सफाई कर्म चारी था ! लोग समय का सदपयोग करना जानते थे, चार बज उठकर हल बैल लेकर खेतों में चले जाना, घर की स्त्रियाँ चार बजे ही कूटना पिसने का काम शुरू कर देती थी ! वे फिर गोशाला में जाकर मवेशियों को बाहर निकालती थी, गोबर समेट कर खेतों में डाल कर आती थी, फिर चश्मे से पानी लाती ! जिन घरों में सास ससुर होते थे वहां बच्चों की देखभाल और खाना बनाने की चिता नहीं रहती, लेकिन सभी भाग्यशाली भी तो नहीं होती थी ! बिजली नहीं थी, मिट्टी का तेल इस्तेमाल होता था, हर परिवार को महीने में केवल दो बोतले मिट्टी के तेल की मिलती थी ! उसी से लालटेन या चिमनियाँ जलती थी ! इसी रोशनी में बच्चे पढ़ते थे ! यही नहीं घर की औरतों को हल लगाने वाले के लिए रोटी और बैलों के लिए जौ के आटे का नास्ता लेकर जाना पड़ता था जहाँ हल लगता ! हल के पीछे पीछे भारी डले निकलते उन्हें फोड़ना पड़ता था, फिर घास लकड़ी के लिए जंगल जाना पड़ता, इस तरह पूरा दिन निकल जाता और कहीं जाकर रात के दश बजे खाना खाकर कमर सीधी करने को अवसर मिलता ! ! मर्द हल लगाकर फिर घर के दूसरे कामोंमें लग लगजाते थे , जैसे हल, जुआ, रस्सी बटना, चारपाई की दावन मवेशियों को बांधने के लिए मजबूत रस्सियाँ, बांस की टोकरी, बहुत सारे काम उन्हें करने पड़ते थे ! ईश्वर की उन पर बड़ी मेहर थी की वे बीमार नहीं होते थे ! कभी कभार सर्दी जुकाम, सर दर्द पीड़ा आम बात थी, उसके लिए कुल पुरोहित होते थे ! इन ब्राह्मणों के पास जमीन नहीं होती थी, लेकिन वे संस्कृति और हिन्दी की अच्छी जानकारी रखते थे ! उनकी हर गाँव में अपनी अपनी वृति होती थी, वे शादी विवाह कराते थे, अपने जजमानों के यहाँ मौके बेमौके पूजा करने आते थे ! वही जन्म पत्री बनाते थे, वर वधु का चुनाव वही करते थे और छोटी मोटी दवा भी देते थे ! कुछ पंडित जी तो ज्योतिष के भी अच्छे जानकार थे ! जजमान भी अपनी हैसियत के मुताबिक़ उन्हें दान दक्षिणा देते थे ! कोई लोभी नहीं होता था, सभी गाँव वासी प्रेम से रहते थे, सामाजिक हर काम में सब इकट्ठा होकर एक दूसरे की मदद करते थे !





इस कहानी का मुख्या चरित्र पर्वतसिंह इसी गाँव का रहने वाला था ! इसने भी बचपन में अपने माँ बाप की सारी परेशानियां देखी थी ! इसने भी कठीन रास्तों पर गुजरते हुए ८ वीं की परिक्षा पास की थी ! आगे पढ़ने की गुंजायस भी नहीं थी और उसने भी जोर नहीं डाला अपने माँ बाप के ऊपर आगे पढ़ने के लिए ! दो साल उसने अपने पिता जी के साथ खेती पाती में उनका हाथ बंटाया ! अब वह १८ साल का हो गया था और नौकरी करके अपने पिता जी की आर्थिक मदद करना चाहता था ! वह सेना में भर्ती हो गया ! एक साल की ट्रेनिंग पूरी करने पर उसे जम्मू काश्मीर भेजा गया और उन्हीं दिनों सन १९६५ की लड़ाई छीड़ गयी पाकिस्तान के साथ ! इसकी यूनिट ने इस लड़ाई में बड़ी बहादुरी का काम किया ! जल्दी ही यूनिट को पीस स्टेशन जोशी मठ मिल गया ! इन्ही दिनों उसका विवाह हुआ परमेश्वरी देवी से ! जिस दिन से परमेश्वरी देवी इस घर में बहु बनकर आई उसी दिन से इस घर से दरिद्री धीरे धीरे बाहर जाने लगी और लक्ष्मी और गणेश जी की कृपा दृष्टि होने लगी ! परमेश्वरी देवी एक धर्म परायण नेक सत्यवादी और एक अच्छे संस्कार वाली नारी थी ! पर्वत सिंह भी हवलदार बन गया था ! उनका एक बच्चा भी होगया था नाम रखा सुमेरसिंह ! गाँव के पास तक सड़क आगई थी ! उसके पिता जी ने सड़क के किनारे ही एक छोटी सी परचून की दुकान खोल दी थी ! पर्वतसिंह भी घर पैसा भेजता था और कुछ दुकान से भी आमदनी होने लगी, इस तरह घर में परमेश्वरी देवी ने घर का माहोल ही खुशनुमा बना दिया ! सास ससुर बूढ़े हो गए थे उनकी दवा और खान पान पर विशेष ध्यान रखती थी ! सास के गठिया बाय थी, देर रात तक सास की मालिस किया करती थी ! सास ससुर खुश थे !


बाकी दूसरे भाग में जारी